'महाभारत' एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें आप जितना अंदर घुसते जाते हैं, उसमें से उतनी ही कहानियां बाहर निकल कर आती जाती हैं। हालांकि इस काल के बारे में एक अहम बात यह भी है कि इस दौर से जुड़े किस्सों को लेकर अलग-अलग विवरण देखने को मिलते हैं। यही कारण है कि भिन्न-भिन्न किरदारों को अलग तरह से परिभाषित भी किया जाता है। वैसे तो 'महाभारत' का ताना बाना मूल रूप से कौरव और पांडव के आसपास रचा गया है।
लेकिन इस कहानी में कर्ण, द्रौपदी, कुंती, गांधारी, विदुर, शकुनि जैसे कुछ किरदार भी शामिल थे जिनका जिक्र समय-समय पर सुनने को मिलता है। वैसे तो कौरवों को विलन के तौर पर ही देखा जाता है जबकि पांडवों की छवि साफ बताई जाती है।
यह और बात है कि कर्ण ने कौरवों की ओर से लड़ते हुए भी अपनी छवि बेदाग बनाए रखी थी। शायद इसलिए एक समय बाद द्रौपदी भी कर्ण को लेकर कुछ ऐसा सोचने लगी थीं। अब इसकी पूरी सच्चाई क्या है? यह तो आपको स्टोरी पढ़ने के बाद ही समझ आएगा।
कुंती पुत्र कर्ण
जब कुंती कुंवारी थीं, तभी कर्ण का जन्म हो गया था। ऐसे में उन्होंने अपने बेटे को गंगा में बहा दिया था। सूर्यपुत्र कर्ण का पालन-पोषण धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ ने किया था। कर्ण तो बलवान, बुद्धिमान, चतुर, सुंदर और उत्तम धनुर्धर थे। वो कर्ण ही थे जिन्होंने दुर्योधन के लिए पूरे विश्व को जीता था।
द्रुपद पुत्र द्रौपदी
पांचाल के राजा द्रुपद की बेटी बेहद खूबसूरत, बुद्धिमान और निडर थीं। द्रौपदी, अर्जुन को चाहती थीं। द्रौपदी के स्वयंवर में अर्जुन ने चुनौती जीतकर उन्हें जीत लिया था।
द्रौपदी ने स्वयंवर में किया था, कर्ण का अपमान।
कर्ण को कहा 'ना'
द्रौपदी के स्वयंवर में कर्ण भी मौजूद थे। लेकिन द्रौपदी ने उन्हें 'सूतपुत्र' कहते हुए अपमानित किया। और तो और चुनौती भी नहीं लेने दी। माना जाता है कि बाद में जब द्रौपदी को पता चला कि कर्ण तो कुंतीपुत्र हैं तो उन्होंने पछताते हुए श्रीकृष्ण से कहा था कि,'अगर मैं इससे शादी कर लेती तो मुझे दांव पर नहीं लगाया जाता और ना मेरा अपमान होता, क्योंकि इस आदमी में मेरे पांचों पतियों की खूबियां हैं।'
जानबूझ कर किया था ऐसा
स्वयंवर से संबंधित एक अन्य विवरण में यह भी कहा जाता है कि, 'द्रौपदी तो कर्ण को पसंद करती थीं, लेकिन द्रुपद ने भीष्म से बदला लेने की प्रतिज्ञा ले रखी थी। दूसरा द्रौपदी के मन में यह भय भी था कि यदि सूतपुत्र से विवाह किया तो बाद में दासी बनना पड़ेगा। ऐसे में उन्होंने कर्ण का अपमान किया था।'
अगली बातों से झलकता है कर्ण का द्रौपदी के लिए प्रेम।
चीरहरण के दौरान कर्ण
जब भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था तब कर्ण इसे रोकने के बजाए पांडवों को खरी-खोटी सुना रहे थे। द्रौपदी को लग रहा था कि कर्ण स्वयंवर के अपमान का बदला ले रहे हैं। लेकिन बाद में श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को समझाया कि कर्ण ऐसा करके पांडवों की अंतरात्मा को जगाने और चीरहरण रोकने के लिए कर रहे थे।
नहीं किया भीम का वध
युद्ध के दौरान एक पल ऐसा भी आया जब कर्ण खुद भीम का वध कर सकते थे। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि कर्ण पहले ही कुंती से वादा कर चुके थे कि युद्ध में उनके पांच पुत्र जिंदा रहेंगे। चूंकि कर्ण तो अर्जुन का वध करना चाहते थे। ऐसे में वो भीम को नहीं मार सकते थे।
हालांकि वजह तो द्रौपदी भी थी। जानिए कैसे?
द्रौपदी की प्रतिज्ञा
माना जाता है कि द्रौपदी ने प्रतिज्ञा की थी कि वो तभी अपने बाल बांधेंगी जब कोई दुःशासन के खून से उनके बाल धोएगा। भीम ने यह काम करने का बीड़ा अपने सिर उठाया था। कर्ण, भीम को मारकर द्रौपदी का अपमान नहीं करना चाहते थे।
वासुकी से की थी रक्षा
किवदंती के मुताबिक वासुकी, द्रौपदी के साथ दुष्कर्म करना चाहते थे। तब कर्ण ने ही द्रौपदी की रक्षा की थी। द्रौपदी ने कर्ण के पैर छूकर उनसे माफी मांगी और यह भी बताया कि वो कर्ण का अपने पांचों पतियों के समान ही सम्मान करती है। आपको याद दिला दें कि द्रौपदी पहले ही कर्ण का अपमान कर चुकी थीं।
द्रौपदी ने पांडवों के सामने खोला था यह राज।
यह भी एक किस्सा
एक कथा ऐसी भी है जिसके मुताबिक पांडवों के 13 वर्ष के वनवास के दौरान जंगल में द्रौपदी एक फल तोड़कर खाने वाली थीं। तभी श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को रोकते हुए कहा था कि, 'वो फल किसी ऋषि के सालों के उपवास को तोड़ने के लिए हैं। यदि उन्हें वो फल वहां नहीं मिला तो वो क्रोधित हो जाएंगे।'
द्रौपदी ने खोला रहस्य
श्रीकृष्ण के अनुसार इस फल को वापस पेड़ पर वो ही व्यक्ति लगा सकता था, जिसके मन में कोई राज ना हो। द्रौपदी के मन में तो राज था और वो फल भी तोड़ चुकी थी, इसलिए वो पांडवों के पास गई और उनसे कहा कि वो हमेशा से ही कर्ण से प्यार करती थीं और उनका सम्मान करती थीं। पांडव यह बात सुनकर कुछ कह नहीं पाए। द्रौपदी ने वो फल फिर से पेड़ पर लगा दिया।
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