आप सोच तो रहे होंगे कि हमने भगत सिंह को 'सिरफिरा' क्यों कहा है? हम तो उनकी दिल से इज्जत करते हैं। मगर आप ही सोचिये वो इंसान 'सिरफिरा' नहीं होगा जो सिर्फ 23 साल की उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गया। आज ही के दिन सन् 1907 को पंजाब के जिला लायलपुर में बंगा गाँव (पाकिस्तान) में भगत सिंह का जन्म हुआ था। 1923 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी। इसके बाद उनके माता-पिता चाहते थे कि वो विवाह के बन्धन में बंध जाएं।
ऐसे में अगर भगत चाहते तो शादी करके अपना घर बसा सकते थे, लेकिन जब शादी की तैयारियाँ होने लगी तो वे लाहौर से भागकर कानपुर आ गये। कारण कि भगत सिंह की रगों में देशभक्ति जो बहती थी। उनके पिता भले ही उनके लिए एक सुन्दर और अच्छी लड़की ढूंढ रहे थे, मगर भगत तो सिर्फ आजादी को ही अपनी दुल्हन बनाना चाहते थे। भगत सिंह अपने देश से बेइंतहा मोहब्बत करते थे। जब कोई इंसान मोहब्बत में होता है तो उसका अंदाज अपने आप शायराना हो जाता है।
आज हम आपके लिए लेकर आए हैं भगत सिंह की ऐसी ही कुछ शायराना बातें जो उन्होंने कभी कही थी।
ज़िंदगी और जनाज़े
अमृतसर आने की वजह - 1919 में रॉलेक्ट एक्ट के विरोध में पूरा भारत प्रदर्शन करने पर उतर आया था। इसी वर्ष 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग काण्ड भी हुआ। इसकी खबर भगतसिंह को लाहौर से अमृतसर खींच लाई।
प्रेमी, पागल और कवि
खून से भीगी मिट्टी - उन्होंने जलियांवाला बाग काण्ड की खून से भीगी मिट्टी को एक बोतल में रख लिया, ये मिट्टी उन्हें याद दिलाती रहती थी कि उन्हें देश और देशवासियों के अपमान का बदला लेना है।
जेल में आज़ाद
इसलिए दी गई फांसी की सजा - भगत सिंह ने सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर सेंट्रल असेम्ब्ली में बम फेंका था। इसी के तहत उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी।
ख़ुशबू-ए-वतन
इस तारीख को होनी थी फांसी- भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी देने के लिए 24 मार्च 1931 तारीख निर्धारित की गई थी।
विचार अमर हैं
पूरे देश में हो रहा था विरोध प्रदर्शन - भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी को लेकर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन जारी था, जिसने सरकार को झकझोर दिया था।
दुश्मन से बहस
एक दिन पहले ही दे दी फांसी - ब्रिटिश सरकार ने जनता के भड़क जाने के डर की वजह से 23-24 मार्च की मध्यरात्रि में ही इन वीरों को फाँसी दे दी थी। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था।
हम पागल ही अच्छे हैं
भगत सिंह के आखिरी शब्द- भगत सिंह की फांसी के समय यूरोप के डिप्टी कमिश्नर भी मौजूद थे, जिनसे भगत ने कहा था कि 'मिस्टर मजिस्ट्रेट आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के क्रांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फांसी पर भी झूल जाते हैं।'
इंकलाब
फाँसी के वक़्त उनके चेहरे पर जरा सी भी शिकन नहीं थी बल्कि भगत सिंह और उनके साथियों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमा और 'इंकलाब-जिंदाबाद' का नारा लगाते हुए मौत को गले लगा लिया।
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